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Mishti M

Abstract Others

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Mishti M

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राधा रुक्मिणी

राधा रुक्मिणी

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राधा सा प्रेम करूँ रुक्मिणी मैं तेरी बन जाऊँ

अधरों पलकों में बसाके हृदय में तेरी बस जाऊँ


बन जा तू मेरी जोगी और मैं जोगन तेरी बन जाऊँ

तुम जो प्रियवर हो मेरे तो फिर क्यूँ ना मैं इठलाऊँ


त्याग बिना है प्रेम क्या तो क्यूँ फिर मैं व्यथा गाऊं

सर्वस्व अर्पण किया तुझे फिर क्यूँ व्याकुल हो जाऊँ


ऐसी हो मेरी अनुराग-शक्ति हरि से तुझे माँग लाऊँ

हो जाए अभिलाषा पूरी करूँ अर्चना हरि गुण गाऊं


निष्ठा मेरे प्रेम की जो निर्मल है ना कभी मैं बिसराऊं

परिमल तेरे प्रेम की निहारूँ तुम्हें न्यौछावर हो जाऊँ।


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