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Mishti M

Abstract Others

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Mishti M

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कान्हा।

कान्हा।

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बंशी बनाके अधरों से लगा लो कान्हा

मुझे अपने नयन में बसा लो कान्हा


भूल जाऊँ मैं इस जग को

मुझपे प्रीत की ऐसी रंग चढ़ा दो कान्हा


तेरी छवि पे बलिहारी जाऊँ

तेरी साँवली सूरत पे मन हारी जाऊँ


तेरी प्रीत में रंगी मैं ऐसे के

ये जग बैरी हो गए कान्हा


सौंप दिया मैंने खुद को अब

मैं तो तेरी जोगन हो गयी कान्हा।


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