क़द्र कर लेना
क़द्र कर लेना
एक मियाद होती है ख़्वाहिशों की,
फिर वो मर जाती है जो
उसके बाद पूरी हो भी तो कोई
कीमत नहीं है
कागज़ात भी वक्त के साथ
जर्द होकर तार तार हो जाते हैं
बच भी जाएं तो रद्दी हो जाते हैं
हर बात पुरानी होकर
बेमतलब हो जाती है
उसे भूल देना जरूरी होता है
ख़्यालात बदल जाते हैं
जज़्बात भी एक दिन बेमानी हो जाते हैं
ताल्लुक़ात अफ़साने हो जाते हैं
मोहब्बत सर्द हो जाती है
क़ौस ए क़ज़ा के रंग भी एक
दिन गर्द हो जाते हैं
रिश्ते नाते हो अनजाने हो जाते हैं
क़द्र कर लेना वक़्त रहते मोहब्बत की
क्योंकि उम्मीदों मिन्नतों चाहतों
और तवज्जुह की भी एक मियाद होती है...