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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational Others

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Nand Lal Mani Tripathi pitamber

Inspirational Others

प्यारा गांव

प्यारा गांव

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प्यारा सा गांव 

बचपन की परवरिश की

मित्र मंडली ठांव।।

लगता था कभी ना छूटेगा

बचपन प्यारा सा गांव

नदी का किनारा पीपल

की छांव।।

प्रथम अक्षर से परिचय

करवाते गुरु जी

पहली पाठशाला 

शिक्षा ,परीक्षा, प्यार

आती झींक माँ होती 

परेशान ।।                  


बापू डॉक्टर ,

वैद्य के पास ले जाते

माँ उतरती नज़र कई

बार मिर्च सरसों 

सर के चारों ओर घुमाता

नजर उतरती बारम्बार।।

नज़र उतरती आग में मिर्च सरसों 

जलती मिर्च और आग के धुएं से

खांसते खांसते नज़र उतर जाती।।

माँ खुश हो जाती

बड़े गर्व से कहती अब किसी

की नज़र ना लगे भोली सी माँ

को क्या पता जिसका नज़र उतरती

उसकी जिगर का टुकड़ा है कितना

शरारती शैतान।।

गांव की मित्र मंडली

सुबह, शाम, दिन ,रात

अवसर तलाशती

गिल्ली डंडा कबड्डी

कंचे खेलने का जुगत

बनाती।।

बचपन की शरारतों में शामिल

गेन तड़ी, लुका छिपी का खेल।


बचपन की मित्र मंडली की

क्या राम, रहीम ,रहमान ओंकार

अल्लाह हो अकबर ।।

पता नहीं सिर्फ निश्छल जिंदगी

निर्द्वंद प्रवाह ।।

              


 ग्रीष्म की तपती दोपहरी

आम के बागों की धमा

चौकड़ी कच्चे आम का

टिकोरा अमिया दिन का

आहार।।

घरवाले परेशान गया कहाँ

उनके घर खानदान का

कुल दीपक।

कभी कभी मरोड़ी जाती

कान रोता माँ होती परेशान 

दुलारती पुचकारती अपने

आँचल में समेटती ।।

उसके दामन के आंचल में

भूल जाता कान ऐंठन की पीड़ा

डांट फटकार मार।।

 मां की ममता की

शक्ति भुला देती तमाम

दर्द घाव।

दुनिया में कही स्वर्ग है

तो माँ की चरणों में उसके

आँचल में सिमट जाता संसार।।

गांव का बचपन निडर निर्भीक

दुखों से अंजान।

अब तो घर के काक्रोच चूहों

मच्छरों से भय लगता जाने

कहाँ चला गया गांव का बचपन

शक्ति साहस।।

बचपन में मेले ,छुट्टियों 

त्योहारों का करते इंतज़ार

मेलों में घूमते शरारतों से घर

परेशान।।


दीवाली के गट्टे लाई चीनी

की मिठाई ,मिट्टी ,के रंग बिरंगे

खिलौनों की भरमार।।

होली में कीचड़, मिट्टी, रंग

पिचकारी उत्साह धमाल

ईद में मित्र मंडली के संग

सेवई का स्वाद ।।

मुहर्रम में इमाम हुसैन की

हर दरवाजे पर इबादत

ताजिये की शान।

गांव की नदी में नहाने

का खोजते बहाना

पहली बारिश में भीगना

कागज़ की कश्ती बारिश

की पानी की नाव।।

आता वसंत शुरू हो 

जाता सुबह की पाठशाला

पाठशाला से छूटते ही 

वासंती बयारों की सुगंध

का आरम्भ होता उमंग उत्साह

गांव की गलियों में टोलियों संग

दिन भर घूमना ।।


ब्रह्म मुहूर्त में महुआ के सफेद

चादर को समेटना पाठशाला ना

जाने के बहाने ही खोजना।।

नासमझ बचपन की अठखेलियों 

जाने कब कहाँ खो गयी

होने लगे समझदार ।।

समझने लगे जाती पाती 

का भेद भाव धर्म और

मानवता का द्वेष दम्भ

गांव का भोला बचपन

क्या बिता हम जाती धर्म

ईश्वर की अलग पहचान

के किशोर अभिमान 

बन गए।।

हो गये नौजवान छूट

गया गांव रोजी रोजगार

की तलाश में कभी देश

प्रदेश विदेश में पहचान

को परेशान।।

अब गांव में अब नजर 

आने लगी लाखों कमियाँ

छूट गया बचपन का गांव

खून खानदान मित्रों की

मंडली आती नहीं याद।।

तीज त्योहार में माँ बाप

से हो जाती मुलाकात

गांव हुआ ख्वाब।।



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