प्यार की कमीज़
प्यार की कमीज़
कतरा कतरा बूँद बूँद
मैं उसको जी रहा हूँ
कुछ कतरन पड़ी है उम्मीदों की
उससे ये ख्वाब सी रहा हूँ।
वो नहीं है पास में
उसकी याद तो है
मेरे होंठों पे उसके होठों का
मीठा मीठा स्वाद न हो।
पल जो बिताये साथ में
वो अभी तक ज़हन में जिंदा है
उड़ना चाहता है उड़ नहीं पाता
दिल का ये जो परिंदा है।
वो बगीचे की घास
वो चिड़ियों की चहचहाहट
मेरे हाथ का उसके हाथ को छूना
और वो पत्तों की सरसराहट।
उसका वो पास आना
दिल की धड़कन बढाता था
रह जाता था स्तब्ध
मैं कुछ भी न कर पाता था।
गर कुछ कर पाता
तो उस लम्हे को फिर से जीता
उन बची हुई यादों की कतरन से
मैं प्यार की कमीज़ फिर से सीता।