एक बूँद और इश्क
एक बूँद और इश्क
एक बूँद गिरी ज़मीन पर,
आसमान का दिल तोड़कर
कैसा दस्तूर है ये किस्मत का,
ज़मीन की प्यास बुझाने को,
आसमान प्यासा ही रह गया।
कुछ यूँ ही तो ज़िन्दगी चलती है,
कोई पाता है कोई खोता है
कोई हँसता है कोई रोता है
उस बूँद की भी क्या किस्मत है,
चाहती जिसे है उसे पा नहीं सकती।
ज़िन्दगी में क्या क्या चाहोगे,
कुछ न कुछ तो बाकी रह ही जायेगा
लोग मिलेंगे, लोग बिछडेंगे
कभी हसाएंगे, कभी रुलायेंगे
ऐ दोस्त कोई न कोई तो
पीछे छूट ही जायेगा।
चाहा तो उस बूँद ने भी होगा,
की बादलों की गोद में राहे,
जहाँ प्यार भी है और यार भी,
पर उसे ये भी पता थ
ा,
की मिलना तो उसे ज़मीन से ही है।
यही किस्सा तो हमारे दिल का भी है,
इसे भी पता है इसका दस्तूर
जिसे वो खो नहीं सकता,
वो उसे मिलेगा नहीं,
और जो उसे मिल जायेगा,
वो कभी दिल में था ही नहीं
शायद प्यार का दूसरा नाम कुर्बानी ही है,
बूँद ने आसमान का दामन छोड़ दिया
भले ही उसकी झोली में कांटे आ गए,
वो ये नहीं देख सकती,
की धरती पर फूल न खिले।
इश्क के इस खेल में
जीत कुछ यूँ ही मिलती है,
दूसरे की ख़ुशी में ही अपनी ख़ुशी
दिखती है तो क्या हुआ बूँद
और आसमान का मिलन हो नहीं पाता है
बिछड़ जाने के बाद भी
उनका प्यार अमर हो जाता है।