पूछ रहा हिमालय
पूछ रहा हिमालय
पूछ रहा हिमालय हमसे,
क्यों काटे तूने मेरे वन
होटल, रिसार्ट बनाकर,
क्यों उजाडे़ मेरे उपवन
सजग प्रहरी बना हमेशा,
तेरी रक्षा कर रहा
इस सेवा के बदले मुझमें,
तू कूड़ा भर रहा
मेरे घराटो को,
तूने क्यों तोड़ा
नदियों पर बाँध बनाकर,
क्यों धारों को मोड़ा
बुरांशों को काटकर मेरे
क्यों चीड़ तूने लगाया
पानी सुखाकर क्यों,
मुझे प्यासा बनाया
जल, जंगल , जमीन को मेरे,
अगर नहीं बचाएगा
सुंदर, स्वच्छ, हरा- भरा,
पर्यावरण कहाँ से पाएगा
मुझे मिटाने चला अगर तू,
तेरा ही अस्तित्व मिट जायेगा
फिर रोयेगा करनी पर अपनी,
केदारनाथ सी त्रासदी पायेगा
मैं पर्वतमाला नहीं हूँ सिर्फ,
मैं तेरा रखवाला हूँ
अपनी शुद्ध हवा, पानी से,
जीवन देने वाला हूँ
मैं स्वयं मैं हूँ संतुलित,
संतुलित विकास चाहता हूँ
अपने सरल, मूक व्यवहार के बदले,
तेरा सरल प्यार चाहता हूँ
मुझको मान मित्र तू अपना,
तभी प्रदूषण मुक्त मैं हो पाऊँगा
देवीय आपदा से मुक्त होकर,
तू भी खुश रह पायेगा..