रात भर यूँ ही हम
रात भर यूँ ही हम
रात भर यूँ ही हम,
करवटें बदलते रहे।
स्वप्न बनते रहे और,
बन कर बिखरते रहे।
आशा- निराशा की नैया में,
डूबते रहे, उबरते रहे रात भर।
सपनों के घरौंदे बनते रहे
और टूटते ही रहे रातभर।
आसमां नीर बहाता रहा,
चकोर चाँद को चाहता रहा।
दिये की रोशनी में पतंगा
रात भर जलता ही रहा।
पत्तों की सरसराहट में,
चौकते ही हम रहे।
कदमों की हर आहट में तेरा,
इंतजार ही हम करते रहे।
अंधेरे- उजालों में खुद को,
जिंदगी भर ढूँढते ही रहे।
जीवन के हर प्रश्न में हम,
हरदम अनुत्तरित ही रहे।