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Rajeshwari pant Joshi

Abstract

4  

Rajeshwari pant Joshi

Abstract

मुझे मत काटो

मुझे मत काटो

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मुझे तुम मत काटो


ना मुझे तुम अब मत काटो, 

मुझे अब टुकड़ों मैं मत बाँटो। 

फिर तुम बहुत पछताओगे, 

फिर नही मुझको तुम पाओगे । 


नासमझ इंसान सोच जरा, 

क्यों काट रहा है पेड़ों को। 

चंद फायदे को तू पाने को , 

पर्यावरण असंतुलित कर रहा है। 


 फिर काट दिया है तुमने, 

प्रकृति का अॉक्सीमीटर। 

अब पीठ में आक्सीजन के, 

सिलेंडर को लिए घूमना । 


और फिर से तुम कोरोना से, 

एक एक सांसों के लिए झूझना। 

जीवन की सांसो को पाने को, 

एक एक पल के लिए लड़ना । 


कितने सुंदर ये पेड़ लगते हैं, 

क्यों तुम इन्हें काटते हो । 

क्या रह पाओगे इनके बिना ,

क्या बंजर धरती चाहते हो। 


सोचो पेड़ काट देना क्या कोई, 

बस छोटी सी एक बात है । 

पेड़- पौधों के बिना तेरा जीवन, 

भी तो कितना बर्बाद है। 


ये बरसता सावन कहा से पायेगा, 

पेड़-पौधों के बिना जीव मर जाएगा।

धरती का पानी भी सूख जायेगा। 

क्या तू बिन पानी के रह पायेगा । 


पेड़ नही तो पक्षी कहाँ सोयेगा, 

घोंसला भी कहाँ पर बनेगा । 

बंदर जंगल में खाना कैसे खायेगा, 

तेरे घर आकर खाना खायेगा। 


शेर भी तेरे घर मे रोज आकर, 

पेड़ क्यों काटे तुझसे पूछेगा। 

मेरा खाना क्यों तूने खत्म किया, 

अब तू भी मेरा आहार बनेगा। 


हरे पेड़ कट जाएंगे तो,संसार में, 

स्वच्छ पर्यावरण भी नही रहेगा, 

इन जहरीली हवा को पीने वाला, 

वो हरा पेड़ कहाँ से मिलेगा। 


तपती दोपहर जब होगी तब, 

तू घनी छाँव को मेरी तरसेगा। 

इस जहरीली हवा में तू भी , 

एक- एक सांस को तरसेगा। 


कार्बन डाई आक्साइड बड़ी तो, 

तापमान भी बढ़ जायेगा। 

इस जलती तपती दुनिया में, 

तू कैसे जिंदा रह पाएगा। 


ग्लेशियर भी पिघल कर फिर, 

इस धरती पर प्रलय लायेगा। 

धरती को इस महाविनाश से, 

तू कैसे तब बचा पाएगा। 


क्यों पैसे के लालच में अंधा होकर, 

तू हम हरे पेड़ों को खत्म करता है। 

क्या प्रकृति के अभिशाप से भी तू , 

बिल्कुल भी अब नही डरता है । 


मत काट तू हरे पेड़ों को अभी भी, 

तू ठहर , सोच , जरा संभल जा। 

इस हरियाली की कीमत क्या है, 

सोच समझ कर तू कदम बढ़ा। 


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