पुरुषत्व का दम्भ
पुरुषत्व का दम्भ
नर होने का दम्भ ना भर सिर्फ मूँछों को ताव देकर!
कुछ इंसानों वाले काम-काज़ भी कर लिया कर।
क्यूँ रूबाब झाड़ता हैं कि तू नारी नहीं पुरुष हैं!
सब कुछ तेरी मर्ज़ी से होगा क्योंकि तू मर्द हैं!
लद गये ज़माने राजाओं वाले जहाँ हुक्म चलते थे,
सियासतें लूट गयी अब तू धरती पर कदम रख ले।
नारी के बोलने, सुनने, देखने पर पाबंदी लगाने वाला??
तू होता कौन हैं नर और नारी में भेद करने वाला!!
नारी चाँद पर भी पहुंची, ओलंपिक मेडल भी लाई,
सरकारी महकमे में प्रथम आई तो तूने ताली बजाई।
भूल जा तू कि तू सर्वेसर्वा और नारी पैर की जूती है,
नारी तो वंश वाहिनी जो रिश्तों में झुकना, निभाना जानती हैं।