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Suresh Koundal

Inspirational

4.8  

Suresh Koundal

Inspirational

पुरुष : ईश्वर की नायाब रचना

पुरुष : ईश्वर की नायाब रचना

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पुरुष है ईश्वर की वो नायाब रचना 

सीखा जिसने औरों की खातिर 

त्याग,समर्पण और समझौता करना, 

बचपन में सबकी आंखों का तारा 

पूरा जीवन जिम्मेदारी का मारा,

भविष्य के सागर की नाव 

मात पिता के पथ की छांव ,

बहन को देता प्यार दुलार

उसकी सुरक्षा का जिम्मेदार,

पत्नी और बच्चों का सहारा

सुख समृद्धि का वो है पिटारा,

हर परिवार का भाग्यविधाता

परिश्रम से है उसका नाता,

घर की खुशहाली की खातिर

सब परेशानियां स्वयं उठाता ,

ख्यालों में भी सबका ख्याल रखता

हर मर्ज की दवा, बाहों में रखता,

तपती गर्मी हो या रातें सर्द

मेहनत करता रहता मर्द,

खुद भूखा पर नित कमाता

दूसरों को वो देता जाता,

परिवार को सुरक्षित रखने को

चट्टान के जैसा वो डट जाता ,

मुश्किलों से न वो घबराता 

मुसीबतों से वो लड़ जाता,

बेख़ौफ़ हो कर भी ख़ौफ़ में रहता

अपना दर्द न किसी से कहता ,

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हौसला उसका ना डगमगाता

मंज़िल पथ पर बढ़ता जाता,

खुद तप कर छाँव सबको दे जाता

घर के सब दायित्व निभाता ,

अपनी अलग पहचान बनाता

परिवार का मान बढ़ाता, 

बाहर से सख्त और अंदर नरम

कर्तव्यनिष्ठा उसका धरम, 

हृदय की वेदना वो पी जाता 

फिर भी पत्थर दिल कहलाता,

हर युग का सबसे बड़ा वो दानी

सब परिस्थितियों का वो ज्ञानी,

धर्मपरायण हर पल है ध्यानी 

प्रत्येक पुरुष की यही कहानी ,

हर ज़िल्लत को वो सह जाता

फिर भी हंसता और मुस्काता, 

अंदर से टूट कर भी वो 

आंसू आखों के वो छुपाता ,

बेटा, पति ,भाई या पति 

बिना शर्त ...रिश्ते निभाता,

सबकी जिम्मेदारी उठता

सबको उठना वो सिखलाता,

जीवन को रंगीन बनाता

सबका दुःख वो हर ले जाता ,

अपने जीवन का कतरा कतरा

कर्तव्य पथ पर बहाता जाता,

हिम्मत और पौरुष की खान 

वही फरिश्ता 'पुरुष' कहलाता ।



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