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Taj Mohammad

Abstract Tragedy

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Taj Mohammad

Abstract Tragedy

पुरानी कोठी के ताख पर।

पुरानी कोठी के ताख पर।

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जलता हुआ चिराग देखा पुरानी कोठी के ताख पर।

क्या अब चाँद की चाँदनी आती नहीं इसके मेहराब पर।।1।।


इतनी खामोशी क्यूँ है छाई इसके दर-ओ-दीवार पर।

जानें क्या कुछ गलत हुआ है इसके पुराने अस्हाब पर।।2।।


क्यूँ अब आते नहीं परिन्दे यहाँ के शजरे साख पर।

इतनी धूल क्यूँ जमीं हैं इसके हर जर्रे-जर्रे के इश्राक पर।।3।।


रहती थी जिन्दगियाँ यहाँ एक दूजे के अश्फाक पर।

शायद हुआ है झगड़ा इन सबका पुरखों की जायदाद पर।।4।।


नूरे कमर से शामें बज्म होती थी अपने शबाब पर।

एक वक्त था सभी मेहमान कायल थे यहाँ के आदाब पर।।5।।


शहर का हर शक्स ही फिदा था इसके मुकाम पर।

शायद कुछ पाबन्दी लगी हो मेरे सवालों के जवाब पर।।6।।



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