पुण्य संचित कीजिए
पुण्य संचित कीजिए


है अच्छुण क्षण भंगुर यह जीवन,
अगले पल का पता नहीं।
सत्कर्मों से जीवन जी ले,
पशु पक्षी को अब सता नहीं।।
भ्रष्ट तरीके अपना करके,
महल दुमहले बना लिए।
निरीह जन को खूब सता,
अधिकोष में संख्या बढ़ा लिए।।
सत्चरित्र सच्चाई के संग,
सदासयता का भाव।
ममता दया और करुणा का,
कभी न हो आभाव।।
परहित सम्भव हो जो करिये,
अहित नहीं होना चाहिए।
कर्म योग श्रद्धा के बल,
पुण्य सदा ही संचित करिए।