पुकार
पुकार
कल जो मुझ तक रास्ते थें
आज वो तुम तक अटक गए
टेढ़ी मेढ़ी चुनौतियों से हारकर
पथरीली चट्टान में फंस गए
यथार्थ संघर्ष की चोट झेलकर
तुरंत चल पड़े धीर गंभीर क़दम
असहनीय अकल्पनीय पगडंडी पर
सुनिश्चित दिशा की डोर पकड़कर
कंटीली झाड़ियां से युद्ध करके
नदी पोखर से पंजे लड़ाकर
दृढ़ निश्चय से बढ़ता रहा
प्रेम पथ की पुकार सुनकर
प्रिये की हृदय में लौट आने!