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CHANDRAYEE BHATTACHARYYA (Pathak)

Drama

3  

CHANDRAYEE BHATTACHARYYA (Pathak)

Drama

पटरी पर रेलगाड़ी

पटरी पर रेलगाड़ी

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रेलगाड़ी अचानक रुक गई

हाय यह मरकट, फिर क्यों थम गई ?

न आगे इस्टिशन, न पीछे कुछ दिखता

इस आफत को, यहीं रुक जाना था ?


पसीने से लथ-पथ, नन्हा बेहाल

गर्मी से माँ का और भी बुरा हाल।

गन्दी गंजी पहने एक गंजा,

बोरे पर बैठा बीड़ी के कस ले रहा था।


मई की गर्मी, ऊपर से धुआँ,

नन्ही जान का, दम घुंट रहा था।

कौन दखल दे, या फिर, सलाह दे,

गंजे का वीरप्पन-सा, मूंछ देखा नहीं क्या ?


बच्चे का पिता, पतला और दुबला,

बैंच के कोने पर, सिकुड़ कर बैठा।

घूंघट के अंदर से आवाज आयी,

“तनिक इसे बाहर घुमा लाओ नी।”


कुछ सवारी नीचे उतर गई थीं

खुली हवा में टहलने लग गई थीं।

आसपास वीरान, न कोई खेत खलिहान

न पास कोइ मकान, न चाय की दुकान।


दूर एक केबिन दिख रहा था;

वहीं आगे कोइ चौराहा जरुर था।

तभी खबर लाया कोई,

आगे मालगाड़ी पटरी से उतर गई।


यह कोई नई बात थोड़े ही है;

‘आज-तक’ में अकसर आता है।

हर रेल मंत्री तो शास्त्रीजी नहीं है;

इस्तिफा वापस लेना कहाँ मनाही है।


बच्चे रो रहे थे, बूढ़े सो रहे थे;

बाकी रेल-व्यवस्था को गाली दे रहे थे।

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