STORYMIRROR

Rajkumar Jain rajan

Romance

4  

Rajkumar Jain rajan

Romance

पति का बटुआ

पति का बटुआ

1 min
198

मौन रहो मत प्रियवर मेरे

कुछ तो मुंह से बोलो

क्यों मुंह लटकाए रहते

मन की गठरी खोलो


है भगवान क्या बतलाऊँ

कैसे बोलूं मन की बात

रोज रोज ज़ेब पर डाका

सही न जाती यह घात


रखूं भारी सावधानी मैं तब भी

 बच नहीं पाता बटुआ मेरा

रोज़ की है ये आफत भारी

कुछ भी नहीं कर सकता तेरा


अब समझ में यह आया

कैसे चुनती सागर से मोती 

तरह तरह से मुझे रिझाती

देख बटुआ धैर्य तुम खोती


चाहे सारी दुनिया मुझे दे दो

सुख दुःख में साथ मैं निभाऊं

सुकून मुझे मिलता इससे

कैसे तुम्हें मैं समझाऊं।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance