पता नही
पता नही


क्या यही जीवन है,
सुख की चाह हैं,
पर सुख क्या है, पता नहीं।
क्या यही जीवन है,
ज्ञान की कामना हैं,
पर सच्चा ज्ञान क्या है, पता नहीं।
क्या यही जीवन है,
जहाँ पग पग पर भेदभाव हैं,
कैसे दूर हो, पता नहींं।
क्या यही जीवन है,
हर जगह अत्याचार हैं, भ्रष्टाचार हैं,
कैसे दूर हो,पता नहींं।
क्या यही जीवन है,
जननी हर पल कष्ट उठाती हैं,
कैसे सम्मान पाए, पता नहीं।
नारी को मनोरंजन की
वस्तु समझा जाता हैं,
कैसे यथार्थ सबको
समझ आये,पता नहीं।
क्या यही जीवन है,
अपनो के
लिए धन कमाते है,
पर अपने क्यो दूर हो जाते है, पता नहीं।
क्या यही जीवन है,
धन को सुख माना जाता है,
क्या यही सच्चा सुख हैं, पता नहीं।
शायद इन सबसे परे,
जीवन एक ऐसी गति हैं,
जहाँ स्वयं से स्वयं का
साक्षात्कार होता है,
यह एक ऐसा अस्थाई पड़ाव हैं,
जहाँ बहुत कुछ सीखना हैं,
बहुत कुछ करना है,
इस जीवन संग्राम को जीतना हैं,
उस परम सत्य को जानना है,
जो जीवन आधार हैं।
बना ले आज वो राह,
कि जीवन सार्थक बने।
हर मुख पे मुस्कान सजे।
दुख बाँटे, सुख ले बँटाये,
जीवन की ये राह बनाये।