पर्यावरण से खिलवाड़ रोक दो
पर्यावरण से खिलवाड़ रोक दो
आज धरा है उदास,
प्रकृति भी है रो रही
देख मानव की दशा,
करुणामय है हो रही।
मानव होता है बुद्धिमान,
फिर कैसा इतना अज्ञानी बन गया
अपने ही जीवन दाता
पेड़ों को घात पहुंचाने में लग गया।
देखकर चकाचौंध माया की,
प्रकृति की माया को भूल गया,
कट काट जंगलों को प्रतिदिन
भवन कारखाने बनाने में लग गया।
आज देखो चारों ओर
कारखाने चल रहे वाहन दौड़ रहे,
प्रदूषण इतना बढ़ गया,
हम नए-नए रोगों के शिकार हो रहे,
प्रकृति का जो हमने उजाड़ किया,
उसके परिणामों से अपनों को रोज खो रहे।
हे मानव अभी भी समय है,
पर्यावरण से खिलवाड़ रोक दो।।
कर कर के के वृक्षारोपण,
भावी संतति को जीवनदान दो दो।।