धन और मन
धन और मन
जगत मिलत धन
दमकत तन मन।
बिन धन यह मन
विकल रहत है।
निशि दिन पल पल
अति धन हलचल।
विषय पकड़ धन
कुटिल बनत है।
चढ़त अहम जब
मिटत विनय तब।
जग हर नर लख
धन बदलत है।
कहत जगत सब
अति धन विष सम।
सुमति करत कुछ
कटक मिटत है।।
जगत मिलत धन
दमकत तन मन।
बिन धन यह मन
विकल रहत है।
निशि दिन पल पल
अति धन हलचल।
विषय पकड़ धन
कुटिल बनत है।
चढ़त अहम जब
मिटत विनय तब।
जग हर नर लख
धन बदलत है।
कहत जगत सब
अति धन विष सम।
सुमति करत कुछ
कटक मिटत है।।