STORYMIRROR

Vivek Agarwal

Inspirational

4  

Vivek Agarwal

Inspirational

परोपकार

परोपकार

1 min
634

परोपकार 


क्या वृक्षों को तुमने देखा है,

निज फलों का स्वयं संचय करते।

वाटिका में पल्लवित पुष्प भला,

क्या मात्र अपने लिये महकते।


जनकल्याण को आतुर अम्बुद,

क्यों अपना अस्तित्व मिटाता।

सूर्य देव के सप्त अश्वों को,

दिन भर क्यों कर अरुण चलाता।


नभ में टिमटिमा के ध्रुव तारा,

पथिकों को है दिशा दिखाता।

अपने कद को काँटछाँट कर,

चन्दा है सबको तिथि बताता।


आखिर अपना क्या प्रयोजन,

जो अवनि भोजन सबको देती।

जग में श्वासों का संचार करके,

वायु क्या प्रतिदान है लेती।


स्व-सदन त्याग निकल पड़ी,

सोचो ये सरिता किसके लिये।

स्वयं जल कर भी प्रकाश बाँटते,

किसको ये छोटे से दिये।


उर-पीड़ा निर्मित मोती से,

सीपी कब करती निज श्रृंगार।

बहुमूल्य रत्नों पर रत्नगर्भा ने,

कब माँगा कोई अधिकार।


कुहुकिनी के कंठ की कूकेँ,

किसको अपने गीत सुनाती।

निश दिन श्रम कर मधुमक्षिका,

मधु किसके लिये बनाती।


निज प्राण सहर्ष त्याग दधीचि ने,

अस्थि वज्र प्रदान किया।

शरणागत धर्म निभाने शिवि ने,

शरीर श्येन को दान दिया।


समुद्र-मंथन से निकले विष को,

क्यों महादेव ने पी डाला।

सात दिनों तक कनिष्ठा पर,

क्यों गोवर्धन उठाये गोपाला।


परोपकार के कार्य हैं ये सारे,

किसी का किंचित स्वार्थ नहीं।

वो जीवन भी कोई जीवन है,

जिसमें तनिक भी परमार्थ नहीं।


प्रकृति हमको नित्य दिखलाती,

बिना स्वार्थ के करो कर्म।

महापुरुष भी यही सिखाते,

परोपकार ही है सर्वोत्तम धर्म।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational