प्रकृति
प्रकृति
मन को विभोर करती
मन को लुभाती प्रकृति
हरे भरे अति पेड़ पौधे
जिनकी होती आकृति।
प्रकृति जीना सिखाती
और खुशहाल रहे हम
प्रकृति सेवा नहीं करते
इस बात का बहुत गम।
प्रकृति भी वरित करती
डार्विन का यही कहना
प्रकृति से प्रेम कर लो
प्रकृति में हमको रहना।
प्रकृति का करो शृंगार
इसको कभी न करे नष्ट
जो इससे खिलवाड़ करे
प्रकृति देती उनको कष्ट।
अनेक तत्वों से बनी हुई
प्रकृति दे हमको जीवन
पौधो की करता पूजा जो
जन जीवन बनता पावन।
मन को सदा हंसाती यह
मानव को रुलाती प्रकृति
प्रकृति से नहीं करे प्यार
प्रकृति का ऋण रहे उधार।
