प्रकृति की गोद में....
प्रकृति की गोद में....
छोड़ भौतिकता के भ्रम को
आ लौट चले प्रकृति की गोद में,
जहां पर्वत भी मंत्रमुग्ध हो खड़े
हरियाली की चादर ओढ़ के।
जहां बहती नदिया कल कल करती
स्वर में राग सुनाती है,
झमझम बरसे बादल भी
धरती की प्यास बुझाती है।
जहां फूलों को देख प्रफुल्लित हो
मन में उठे मधुर स्पंदन,
भौरों की मीठी गुंजन से
चहक उठे हर बग़ियन।
जहां सुगंधित पवन गीत सुनाए
गाते पक्षी प्रेम की बोली,
नभ में तारे टिम टिम करते
बन चांद संग वो हमजोली।
भोर सूरज की स्वर्णिम किरणें
आभा फैली गगन के पार,
औंस की बूंदें नाचें पंखुड़ियों पर
जाग उठे पंछी हर द्वार।
धरती बोले मीठी बातें
झील में चाँदनी नहाए,
तारे करें आसमान में पहरा
आंखों में मंजर ये सुहाए।
यहाँ न कोई छल मिलता
न लोभों का है जाल,
सच्चे सुख की छाँव यही पर
मन में बहते निर्मल विचार।
चलो प्रकृति के पास चलें हम
उसका करें सदा हम वंदन,
उसकी गोद में ही बसते हैं
जीवन के सब अनमोल रत्न।
