प्रकृति के हाइकू
प्रकृति के हाइकू
हवा बहती
ठंडा सा अहसास
मन महका
फूल खिलते
चारों और खुशबू
फैलती जाती
तितली उड़ी
रंग बिरंगे पंख
देखता मन
कमल खिले
सूरज का उदय
हो रहा अब
आग का देव
खुद मन भीतर
जगा लो उसे
ईश्वर कहाँ
सब जग ढूंढता
मन में पाया
निर्धन कौन
जीता खुद के लिये
वही निर्धन
अश्रु निकले
बाहर बहकर
राज कहते
भाई भरत
अब कल्पना जैसा
लगता मुझे।
