प्रियतम
प्रियतम
तेरा होना ही काफ़ी था जहाँ के गम से लड़ने को,
तेरा वजूद जो खोया,जी करता है जीवन दरिया में डूब मरने को।
तेरी फूल सी प्यारी मुस्कान और व्योम सा विशाल ह्रदय,
तू ईश्वर की अद्वितीय रचना था, प्रेम था तुझ में अतिशय।
ईश्वर को अपनी रचना में इतना घमंड फिर हो गया,
हम नादाँ परिंदों से छीन अपने समीप तुझे ले गया।
बच्चों के संग बच्चा, बुजुर्गों के संग वयस्क था,
अपनी व्यवहारिकता में तू इतना जबरदस्त था।
तेरी ग्लूकोज सी हर प्रेरणा फिर मझधार में यूँ छोड़ना,
जैसे कि शिखर तक ले जाकर एकाएक मुँह मोड़ना।
तेरे होने पर हर दिन होली हर रात दिवाली लगती थी,
तेरे बिन दिये का उजास फीका,होली बेरंग सी लगती है।
यूँ तो तेरी मूरत को दिल में बसाया है सूरत की दरकार ही नहीं है,
पर तेरे जाने के बाद अब हवाओं में वो पहले जैसी बात ही नहीं है।

