प्राची उसका नाम
प्राची उसका नाम
मध्यमवर्गीय घराने में आनंद कि किरणें फूटी थीं,
जब चहकते विहान के आफ़ताब सी प्यारी कन्या जन्मी थी।
मम्मी की दुलारी और पिताजी की जान,
माँसी माँ ने रखा दिया था प्राची उसका नाम।
फुलवारी सी प्यारी मुस्कान,नटखट चंचल बोली,
पटर-पटर सब लगे बताने घर की राजदुलारी।
पढ़ाई में मध्यम पर कलाओं की थी रानी,
सिलाई-बुनाई, नृत्यादि, मेंहदी भी लगाती प्यारी।
मम्मी की परछाई संभालती बखूबी ज़िम्मेदारी,
बचपन से थी उसके अंदर सारे जहाँ की समझदारी।
पिताजी की पेन से मम्मी की पिन तक की खबर रखती,
जाने क्या होगा जब चली जाएगी छोड़ के डेहरी।
ईश्वर की अनुकंपा से पिताजी ने उत्तम वर ढूँढ निकाला था,
ससुराल पक्ष की सहमति से घर में हर्षोल्लास छाया था,
पर होनी तो देखो पिताजी को मझधार में छोड़ जाना था,
अब इस बेरंग से जीवन क्षण में बिटिया को धैर्य दिखाना था।
उनके चुने वर को आशीष मान उसने दिल से अपनाया था,
वर ने भी स्वीकृति भर कर रिश्ते को आगे बढ़ाया था।
वो तो जैसे मौन करुणा का सहारा बन गए थे,
यौवन की उभरती साँस में वायु से वे ढल गए थे।
सारी रस्मों-कस्मों से इक नया सफर तय करने जा रही है,
अपने संस्कारों की खुशबू से नई दहलीज़ महकाने जा रही है।
बहू के अक्स में बेटी पाकर सास भी मन ही मन मुस्काएगी,
जब पिता के आँगन की चिड़िया उनके घर में जाएगी।
