परिवार और समाज

परिवार और समाज

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सफलताओं के पीछे सम्पूर्ण श्रेय

खुद, माता पिता, परिवार और

समाज का होता है !

सिर्फ अपने लिए जीने से

अंजाम बुरा होता है !!


सपनों को तोड़ कर

ह्रदय को मरोड़ कर

आशीष के बिना

विजय का पताखा कहाँ ?


कड़ियों की लड़ी

धीरे -धीरे बिखरने लगती है !

अपनों से दूर होकर

सामाजिक स्तम्भ

की नीव हिलने लगती है !!


ह्रदय के तार बुन कर

परिवार और समाज के

साथ चलकर

तभी कारवां बनता है

जीवन सुखमय,आशीष,स्नेह

मृदुलता के रस से घुलता है !!



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