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Mahesh Kumar

Abstract

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Mahesh Kumar

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परिश्रम का बीज

परिश्रम का बीज

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मेहनत हर ईमान की

यूँ ऐसे रंग लाएगी

व्यर्थ में सूखे बीज से

भी हरितक्रांति आएगी


सोच-खोज कब कौन चला

नियमित पथ हर रोज ढला

जिंदा आग जला के देख

मरके तो हर मुर्दा जला।


धुंआ बन जब नीर उड़े

प्यास तभी बुझ पाएगी

व्यर्थ में सूखे बीज से

भी हरितक्रांति आएगी


है धूप उजाला साया का

सच संगत की काया का

तू इसमें हाथ भिगोते जा

श्रम के बीज यूँ बोते जा


लालच की है चाह बुरी

संग बारिश बह जाएगी

व्यर्थ में सूखे बीज से

ही हरितक्रांति आएगी।


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