प्रहरी
प्रहरी
रण के रणबाँकुर ज़ोर लगा
हिम्मत को अपने शीश लगा,
आने दे क्षत्रु को समक्ष
तू सहज युद्ध का बिगुल बजा।
जा टकरा जा मैदान में तू
माथे पे मृत्यु तिलक सज़ा।
लेकर चल जान हथेली पे
डर से ना कभी तू यूँ घबरा।
डर से जीता वो रण जीता
इस बात को गाँठ लगा ले तू,
ये डर है मन का इक वहम
इस वहम को आज जला दे तू।
इस धर्मक्षेत्र के रक्षण में
उतरे थे पाण्डव भी रण में,
अपनो से टकराए थे वो
पापनाश करने क्षण में।
अधर्म खड़ा हो जब प्रचंड
आगे तो बढ़ना पड़ता है,
आने वाले तूफ़ानों से
निर्भय हो लड़ना पड़ता है।
वही धर्मक्षेत्र अब भी है यहाँ
हर तरफ़ राक्षसी पहरा है,
तू ही प्रहरी है इस रण का
बँधना तेरे सर सहरा है।
