ये दुनिया नहीं कायरों के लिए
ये दुनिया नहीं कायरों के लिए
कोई तो भरोसा है जो चल रहें हैं बेख़बर
ना गिरने का कोई डर ना दुनिया का कोई असर।
तलवारें बनी नहीं मयानों के दायरों के लिए
ये दुनिया नहीं है मेरे यार, कायरों के लिए।
क्या हुआ जो हवाओं का रूख साथ नहीं हमारे?
क्या हुआ गर तूफ़ानों का वेग हाथ नहीं हमारे?
क्या हुआ जो दिन हसरतों में और रातें तारों में गुज़ारें?
हम भी हैं यारों, आख़िर उस मालिक के प्यारे।
ठहर ज़रा, रुक के चल
गुज़रने जाने दे ये नकमियाबियों का सिलसिला।
ज़िंदगी एक लम्बी दौड़ है मेरे भायी
अभी कैसे बताएँ, क्या मिला और क्या नहीं मिला?
जो जा चुका उसे जाने दे हाथ से
रेत को कौन रोक पाया है अपने हाथ से?
जो आगे है, वो सच है, साफ़ है
थोड़ा होंसला दे ख़ुद को इस बात से।
दिन और रात भी एक वक़्त पे एक हो जाती है
कभी सोचा है, भला चींटी कैसे ख़ुद से चौगुना वज़न उठाती है ?
होने को तो दुनिया में एक से एक करिश्मा होता है
बेज़ार घड़ी भी दिन में दो बार वक़्त सही बताती है।