Ankita Sharma

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आघात

आघात

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सड़कों पर चलना पाप हुआ

नारित्व यूँ जलकर खाक हुआ,

इस देश को आख़िर पड़ी है क्या

एक बार नहीं ये लाख हुआ।


किस मुँह से समझाऊँ ख़ुद को

ज़ख़्मों को दिखलाऊँ किसको?

छलनी हूँ मैं इन वारों से

थक चली चलके अंगारों पे।


जिस्म ये चाहे उसका था

आघात हुआ तो मुझको है,

ये देश जवाब देगा किसको

धिक्कर तो आख़िर उसको है।


क्रोध करूँ या शोक करूँ

समझ तो बिसरी आहों में,

क्या वस्तु हूँ वासना पूर्ण

कि जलूँ हवस की बाहों में?


हारी थी वो हारी हूँ मैं

हारी हर इक महतारी है,

बस बहुत हुआ हँसना-चलना

हर साँस देह पर भारी है।


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