परेशान
परेशान
मैं बेसब्री की गाथा, मैं भ्रमित,
चिंता की चिता में जलता हर पल मैं मशहूर कथित चिंतित
मैं आंदोलित, काले घने मेघों से बरसती बारिश की गीली फुहारों से,
मैं विचलित चमकते प्रभा की आभा में दमकती काया की माया से
अँधेरे का सन्नाटा हो या उम्मीदों भरी रौशनी
मैं हर पल रहता हूँ परेशान, की
जब तक नहीं खिसकती मेरे रीढ़ की हड्डी की कमान से निकले
तीर की कड़वी चाशनी की तेज़-धार, देख यह परेशानी
रोता हूँ -बिलखता हूँ, आंसू से सरोबर
खिंसकते-खुरचते पहुँचता हूँ हकीमों के दरबार,
बीच पूरे रास्ते चिढ़ाते लोग "क्या हुआ बे बुड्ढे"
गिर गया ना अपने ही खोदे गड्ढे, की
मैं परेशान रहता हूँ निरंतर,
अरे कोई चूक या त्रासदी नहीं !, शगल है मेरा, जानते हैं सब<
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पूरी तरह टूटकर जब और अधिक नहीं सोच पाता हूँ,तब
रुक जाता हूँ,
फिर कुछ देर रुक
फिर एक बार निकल पड़ता हूँ दौड़ते ख्यालों के घोड़े लिए उस बज़ार मैं बेज़ार बेलगाम
ढूंढने एक और नायब क्षुब्धों का हीरा, व्याकुलताओं का पन्ना,
पहनकर ताज अधीरता जड़ा, की
सुन लो कर्मो के हितैषी,
कोई अमन कोई इत्मीनान मुझे रोक नहीं सकता
चेनोसुकूं, शांति, या हो शीतलता भरी मति, या हो
कासी हुई तंग मेहनत बाद की शिथिलता
इन सब मिथ्या से परे हो चूका हूँ मैं, की
ख़ामोशी ठहराव की मुझे कोई मदहोशी नहीं
मैं गर्मजोशी का पर्याय इन सब बंदिशों से आज़ाद,
क्या अल्पविराम क्या पूर्णविराम, मैं चतुर अनमोल
आतुर ज़िन्दगी में चाहिए बस आराम ही आराम ही आराम ही आराम।