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अनूप बसर

Abstract

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अनूप बसर

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परेशां तितली

परेशां तितली

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स्याह रात में बेखबर निकल चुकी हूँ,

खुद के आशियाने को छोड़ चुकी हूँ।


मैं बहुत फूलों पर बसर कर चुकी हूँ,

अब खुद को कुछ-कुछ भूल चुकी हूँ।


तंग सी थी उन पुरानी बगियाओं में,

शायद मैं अब परियों के देश चुकी हूँ।


मेरा सफ़र तन्हायों से भरा हुआ है,

मैं एक जमाना पीछे छोड़ चुकी हूँ।


मुझको सम्भाले हुए है ये तारों भरी रात,

मैं खुद का इनमें अपनापन देख चुकी हूँ।


पंख मेरे आखिरी सांस तक साथ दे दें,

मैं खुदा से ऐसा वरदान मांग चुकी हूँ।


मुझको इस सफ़र में ही आज़ाद मर जाना है,

इसलिए मैं खुद की कब्र पहले ही खोद चुकी हूँ।


मेरी मौत के बाद आंसू मत बहाना कोई,

मैं खुद को इस ज़माने से पहले ही मार चुकी हूँ।


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