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Babu Dhakar

Abstract

4.0  

Babu Dhakar

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प्रेमियों का अभिशाप

प्रेमियों का अभिशाप

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प्रेम का यह प्रकाश

इस प्रेम मय जीवन में

प्रेम प्रसंगों की प्रकृति को

निर्धारित करता रहता है ।


उम्मीदों में आंसुओ को

आंसुओं में मौन यादों को

जिंदगी का यह सफर सुहाना

जिंदगी के आखिर तक याद रहता है ।


कुछ पल की जिंदगी

सब कुछ बदल देती है 

खौफनाक चेहरे इस राह में

जिंदगी का खून कर जाते है ।


किसी का साथ निभाने की बातें बेतुकी

मन की निराशायें बेशक है निराधार ही

हम है ऐसे ही जो कुछ पल खुश होकर 

इस निराशा से पार जाने की सोचते रह जाते हैं ।


प्रेम प्रसंग सुन कर किसी का

जब मेरा मन प्रेम पाने को बहका

तब उसने रोष में आकर बोला ऐसा

जिससे मैं अपना मन मसोस कर रह गया ।


प्रेम के अप्राप्य इस स्वरूप ने

मुझे बुरी आदतों के साये में धकेल दिया

मैं इनसे निजात पाने के प्रयासों में

जिंदगी में आखिरी दिन के करीब आ गया ।


राष्ट्रीय युवा दिवस तो अभी बिता

और कैसे ज़िंदगी का आखिरी दिन आ गया

हां खेत खलिहानों के इस तरह मिटते स्वरूप से

अन्न के नाश से कभी भी हमारे दिन

आखिरी हो सकते है ।


ये खेत खलिहान ही तो प्राणों के आधार है

इस आधार को मिटाने लगे जो निराधार है

प्रेम ही सत्य है इनमें मेहनत का स्वरूप

जो जीवन को देता है स्वयं अपना रूप ।


ऊंचाई पर है जो इनका अंहकार 

इसे मिटाने को हम रहे हमेशा तत्पर

इस पार अंधेरे में कुछ नहीं दिख रहा

हमें उस पार के प्रकाश को प्राप्त करना है।


उस पार के प्रकाश पर एलियनों का कब्जा है

कई स्पेसीज को इसने बंधक बना रखा है

इन पलों में एलियन इस तरह से हमारे आस पास है

दिखते नहीं पर खिलते खलिहानों को मसल रहे हैं ।


इन एलियनों की आंखें नशीली है

खेत खलिहान इनके हथियार है

कृषक बेचारा इनकी तलवारों की धार है

जिससे काट रहे इसके ही खेत खलिहान है ।


ये एलियन भटकती आत्माएं हैं

ये अपना फर्ज भूल गई हैं

अपने अहंकार से तृप्त नहीं है

इसलिए सबको भटकाने में लगी है ।


जिन एलियनों ने तिरंगा उतारा है 

उन ने खेत खलिहानोंं को उजाडा है

ये एक दिन तरस जायेंगे अन्न के दानों को

ऐसा खेत खलिहानों के प्रेमी दे रहे हैं अभिशाप ।



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