प्रेम माह
प्रेम माह
तुम बन जाना मलय पवन, मैं बहती सरिता धार प्रिये।
मिलने मुझसे तुम आ जाना, है बसन्त त्यौहार प्रिये।
लिए लालिमा सूरज आया, पक्षी भी करते कलरव।
झूम झूम मन बहका जाए, करता मंगल गान प्रिये।
बीता साल दिवस ये आये, मादक पीली सरसों छाए।
किया धरा ने जैसे हो, पीतांबरी श्रृंगार प्रिये।
आम की डाली पर बैठी है, कूके कोयल मतवाली।
गीत प्रीत में रचा बसा मन, तुम ही एक विचार प्रिये।
धूप छांव का खेल खेलते, बादल घूमें हर क्यारी।
यूँ खिल पौधे मुस्काये है, इनसे हो ज्यों प्यार प्रिये।
विचलित मन ये धीर न रखता, हर सम्भव प्रयास किया।
नहीं समझते तुम भावों को, कैसे मैं समझाऊँ प्रिये।
प्रेम पूर्ण यह माह फरवरी, मिलते जुलते है दो दिल।
आओ सन्मुख तुम एकांत में, कह दूं अपने भाव प्रिये।