प्रेम का ख्याल
प्रेम का ख्याल
सुनो दिकु.....
याद आ रहा है तुम्हारा फिक्र करना मेरे लिये
छोटी छोटी बात पर तुम चिढ़ जाया करती थी
तुम मेरे पास मेरा ही ख्याल रखवाया करती थी
कितना भी बिज़ी क्यों ना होऊं
खाने को पहले और काम को बाद में बताया करती थी
जब तुम से बात करने के लिये जूठ में हामी भर देता था की खा लिया
तब तुम अक्सर गुस्सा कर जाया करती थी
ठंड में मेरे जैकेट की फिक्र करती थी तुम
बारिश में ज़बरदस्ती रेईनकोट पहनाया करती थी
आज तुम्हारी वो हठ, तुम्हारा गुस्सा सुनने के लिये खुद का ख्याल नही रखता में
जिस से मेरी सातों इंद्रियां खुल जाया करती थी
अकेला हो गया हूँ बिल्कुल
सच में दिकु, दूर रहकर भी तुम मुज से मेरा ख्याल रखवाया करती थी।