प्रेम है जीवन का आधार
प्रेम है जीवन का आधार
आओ ये है प्रेम का विहार..
यहां प्रेम है जीवन का आधार...
प्रेमी का रास्ता मंदिर और मस्जिदों की तरफ नहीं जाता।
प्रेमी का रास्ता काबा और कैलाश की तरफ नहीं जाता।
प्रेमी का रास्ता किसी परमात्मा की मूर्ति, प्रतिमा, धारणा से संबंधित नहीं है।
प्रेमी का रास्ता तो यह सारे अस्तित्व से प्रेम है।
ये वृक्ष, ये चांद, ये तारे, ये हवाएं,
ये बादल, ये पहाड़, ये नदियां,
ये लोग, ये पशु, ये पक्षी,
यह सारा अस्तित्व प्रेमी के लिए मंदिर है।
यही उसका काबा है,यही उसकी काशी है।
हर घड़ी अहंकार को पोंछते चलो,
मिटाते चलो, जलाते चलो।
टिकने न दो, रुकने न दो, सहारा न दो।
भूल कर भी उसे भोजन मत दो।
जाने-अनजाने भी उसकी रक्षा न करो,
उसे मर जाने दो। अहंकार एक झूठ है।
मर जाए तो सत्य प्रकट हो।
सत्य को खोजना नहीं है।
सत्य तो हमारे भीतर विराजमान है,
और हमारे बाहर भी।
सत्य का अर्थ--वह, जो है।
और असत्य का अर्थ--वह, जो है नहीं,
लेकिन भासता है कि है असत्य मृग-मरीचिका है।
दूर से लगता है कि है; पास जाओ तो कुछ भी नहीं।
अपने अहंकार को जरा गौर से देखो,
अपने अहंकार पर जरा आंख गड़ाओ।
अहंकार पर आंख गड़ाने की कला ही ध्यान है।
ध्यान कुछ और नहीं, बस छोटा-सा राज,
छोटी-सी कुंजी: अपने अहंकार पर अपनी आंखों को गड़ा लेना।
और जैसे ही तुम्हारी आंखें अहंकार पर ठहरेंगी, तुम चकित हो जाओगे;
इधर आंखें ठहरीं वहां अहंकार तिरोहित हुआ।
वह था ही तब तक जब तक तुमने भर नजर देखा न था।
तुमने देखा कि गया।
जैसे ही तुम्हारे भीतर दर्शन, दृष्टि,
द्रष्टा का आविर्भाव होता है,
साक्षी जगता है, अहंकार बिखर जाता है।
छाया मात्र है, आभास है।
और अहंकार के बिखरते ही उसका तत्क्षण पता चलता है,
जो आभास नहीं है; जो तुम्हारे भीतर मौजूद ही था,
लेकिन अहंकार की भ्रांति में छिप गया था।
न तो रामनाम जपने से कुछ होगा, न नमोकार पढ़ने से,
न ओंकार का पाठ करने से।
अगर कुछ हो सकता है तो बस एक ही सूत्र है
उसकी एक ही कीमिया है:
अपने अहंकार को गौर से देखो, साक्षी बनो।
और अहंकार गिर जाएगा तो अनुभव हो जाएगा सब।
फिर उसे चाहे प्रेम कहो, चाहे परमात्मा कहो, चाहे सत्य कहो, चाहे मोक्ष कहो।
ये सब एक ही अनुभव को कहने के
अलग-अलग ढंग हैं।

