परदेशी
परदेशी
देखने मे साधारण सा था,
न जाने कौन से देश से आया था ?
हमारी इस धरती पर,
नया वह मेहमान था।
सब बातों से परे
उसके ही धुंद मे रहता था,
कुछ पुछूँ भी उसे तो
अपने आप ही हँसता था।
दुनिया की समझ थी,
लोगों से भी पहचान,
इस धरती की मनुष्य से
था वह परेशान.
हजारों सवाल मन मे थे
पूछने का था डर,
शायद वह समाझ गया था
स्वार्थ से भरे मनुष्य मगर।
उसमे दिल है भी या नही
पता नही,
लेकिन एहसास
उसे भी होता था।
जब गुस्सा ज्यादा आये,
अपने आप ही चुप होता था
>शायद समझाने वह आया था
धरती की मुसीबतों का हल,
सच्चे दिल से बचावों धरती को,
मिलेगा आपको ही फल
लालच छोड़के,
दिल से दिल को जोड के
शायद अपनापन जताना था।
लगता है बुरे हालात से गुजरा था
मनुष्य जीवन के हर एक
हिस्से से वह जुड़ा था।
लोगों की कठिनाइयों के सामने
वो भी शायद झुका था
लेकिन दिल से प्रयास करके
मानव की मानवता बचा रहा था।
कोशिश तो एक ही थी मन मे
स्वार्थ से भरे मानव को,
अपनापन सीखना था।
जब मनुष्य, मनुष्य के गुणों को भूलता है
तब रोबोट ही आकर समझाता है।