सब एक
सब एक
1 min
100
धरती के पुजारी हैं और आसमान के पंछी,
विविध रिश्ते निभाकर रस्मों को संभालती हैं,
यहां की हर एक बंदी।
हम सब भूल चुके हैं
संसार तो सारा ब्रम्हांड है,
हमको सिर्फ अपनी पड़ी है
किताबों मे पढ़ते हैं मूल्यशिक्षण की बातें"
पर्सनालिटी डेवलपमेंट भी होती है पर
संस्कारों को भूल चुके हैं हमारे ही अपने।
आओ हम सब ठांन लें
वही दौर फिर से लाएं,
नये दौर में नई सोच को आगे बढ़ाएं।
सारा जहाँ अपना है, ये सच है कोई सपना नहीं
आओ सब वसुधैव कुटुम्बकम सन्मान करते हैं
हाथ बढ़ाकर पृथ्वी की रक्षा करते हैं।
