अनजान रिश्ते
अनजान रिश्ते
1 min
432
कुछ रिश्ते बनते है अपने आप
ना होता है उसका कोई नाम
ना कुछ पता
कभी कभी तो समझ में भी
कुछ नहीं आता
दिल के पार जाकर
अपना सा लगता है
रिश्तों की माला
धागों में पिरोई जाती है
कश्मकश जिंदगी की
चलती रहती है
यही अनकहे रिश्ते खुशी
देखकर गुम हो जाते है
तो कभी साथ भी रहते है
मन में एक सवाल उठता है
हमारे अपनों से उम्मीद
करना बेफीजूल होता है
तो रब ये रिश्ते बनाता ही क्यो है ??
