मैं नदी
मैं नदी
प्रवाह के साथ दिशा बदलती हूँ
सब गंदगी समेटकर
जिसमें जाती हूँ उसको समा लेती हूँ
कंकर की एक मार से
लहरों को जन्म देती हूँ
नदी किनारे घुमते वक्त
कोई मेरा हाल भी पूछता है ?
क्या किसी के मन में
कभी सवाल उठता है ?
बहती रहती हूँ
कभी मैं भी थक जाती हूँ।
दिल को सिर्फ एक बात चुभती है
मेरे वजह से किनारे दुरिया सहते हैं
काश मैं कुछ कर पाती,
अपने हाथों से किनारों की दूरियां मिटाती।
