किशोर राजवर्धन
Drama
तेरी यादों के जख्मों ने
ऐसा तराशा मुझे कि,
अब लोग मुझ मैं
तेरी परछाई ढूंढते हैं।
महफ़िल यारों
परछाई
मैखाना
ताश के घर-सा बारंबार बसाते-नेस्तनाबूद करते दिखते हैं... ताश के घर-सा बारंबार बसाते-नेस्तनाबूद करते दिखते हैं...
खुशी से भर लो सब झोली और बोलो आज होली है। खुशी से भर लो सब झोली और बोलो आज होली है।
अपनी सखी सहेलियों के संग बिंदी लिपस्टिक लगाकर संवरना सजना। अपनी सखी सहेलियों के संग बिंदी लिपस्टिक लगाकर संवरना सजना।
फिर संक्रांत उतार कर, शुभ काम करने के इशारे हो गए। फिर संक्रांत उतार कर, शुभ काम करने के इशारे हो गए।
अपने अधूरे-बिखरे सपनों को अपने हाथों से सजाना चाहती हूँ। अपने अधूरे-बिखरे सपनों को अपने हाथों से सजाना चाहती हूँ।
क्या जुदा ही होने को बेटी बाबुल के घर में पलती है? क्या जुदा ही होने को बेटी बाबुल के घर में पलती है?
नहाने में भी हो जाती, आनाकानी सर्दी रानी करती, बहुत ही शैतानी नहाने में भी हो जाती, आनाकानी सर्दी रानी करती, बहुत ही शैतानी
सबसे प्रेम से रहो, प्रेम जिंदगी बही सुबह निकल गई, बस रात रह गई सबसे प्रेम से रहो, प्रेम जिंदगी बही सुबह निकल गई, बस रात रह गई
मोहब्बत, इश्क कह कर फिर दगा वे देते हैं। मोहब्बत, इश्क कह कर फिर दगा वे देते हैं।
धर्म पे लड़ो - मरो , जंगल का सबसे बड़ा ये मुद्दा है जंगल उस ओर बढ़ रहा जहाँ नफरत का गड्ढा है धर्म पे लड़ो - मरो , जंगल का सबसे बड़ा ये मुद्दा है जंगल उस ओर बढ़ रहा जहाँ नफर...
प्यार की ज़ाम छलकाने के लिये सनम, मैं तुझे देखने के लिये बेकरार हो रहा हूं। प्यार की ज़ाम छलकाने के लिये सनम, मैं तुझे देखने के लिये बेकरार हो रहा हूं।
जिसमे धर्म ख़ातिर, लड़ते योद्धा सब केश, कड़ा, कच्छा, कृपाण ओर कंघा जिसमे धर्म ख़ातिर, लड़ते योद्धा सब केश, कड़ा, कच्छा, कृपाण ओर कंघा
भाई बड़े बड़े व्यापार आ गये सबके अपने अपने॥ भाई बड़े बड़े व्यापार आ गये सबके अपने अपने॥
कोई बाल मन सी हसरत उठेगी देखना फूँक मार फिर उड़ाएगा कोई बाल मन सी हसरत उठेगी देखना फूँक मार फिर उड़ाएगा
भीनी सी खुशबू खनक कर छन के आई थी, मानो कह रही थी बात कोई, भीनी सी खुशबू खनक कर छन के आई थी, मानो कह रही थी बात कोई,
घोंसले कितने बने मुझ पर उसका अंदाजा नहीं डाल डाल पर नाचे पंछी उस आनंद का ठिकाना नहीं।। घोंसले कितने बने मुझ पर उसका अंदाजा नहीं डाल डाल पर नाचे पंछी उस आनंद का ठिका...
क्या था लोक लिहाज़, बंदिशों और बेड़ियों का दूजा नाम, क्या था लोक लिहाज़, बंदिशों और बेड़ियों का दूजा नाम,
किसी से भी न करो, नोंकझोंक समय को बना लो, अपना दोस्त किसी से भी न करो, नोंकझोंक समय को बना लो, अपना दोस्त
सब कहेंगे मेरे कंधे पे चढ़कर जाओ हाँ वो मेरा हक़ पेंन्डिंग रहा सब पर। सब कहेंगे मेरे कंधे पे चढ़कर जाओ हाँ वो मेरा हक़ पेंन्डिंग रहा सब पर।
सोचे मानव समाज एक बार पुनः छोड़ के भेदभाव का मानसिक विकार। सोचे मानव समाज एक बार पुनः छोड़ के भेदभाव का मानसिक विकार।