पोशीदा गौहर
पोशीदा गौहर
क्या ढूंढते है इधर उधर मोतियों को,
यह पोशीदा है हर नज़रों में बड़े अदब से,
गाफिल हुए क्यों बैठे है इस बात से,
अश्कों की हर इक बूँद क्या किसी मोती से कम है,
आंखों से निकली हर इक बूँद
जज़्बातों के धागे में पिरोए होते हैं,
यही अमल हम भी अक्सर करते हैं,
फिर हर्ज क्या है जो सब की नज़र हम पे है,
अब है यही लिखा तक़दीर में तो फर्क क्या है,
हम ने तो तदबीर भी बहुत की के तक़दीर बदल जाए,
पर होता तो वही है जो तक़दीर में लिखा जाए,
रहा ना तासीर अब किसी आह में
ना ही रहा कोई असर किसी फरियाद में।
