पलाश बनकर आना
पलाश बनकर आना
निष्ठुर नयन है थके थके से
स्वर नहीं निकल रहे मुख से
जलती बाती सा मन मंदिर
सुनो!
इस बसंत जब आना
पलाश बनकर आना
अनकहे शब्द व चुप सी बातें
कुछ स्मृतियों की याद दिलाते
उदास चुपसा है मन मंदिर
सुनो!
इस बसंत जब आना
पलाश बनकर आना
चंद्रमा झाँक रहा खिड़की से
द्वार पर फैली है चांदनी
दीपक जल रहा मन मंदिर
सुनो!
इस बसंत जब आना
पलाश बनकर आना
लाना पुष्पों की अनंत बहार
महक उठे क्षण क्षण का प्यार
लिए प्रेममय गुलदस्ते संग
सुनो!
इस बसंत जब आना
पलाश बनकर आना।