STORYMIRROR

Nayana-Arati Kanitkar

Romance

4  

Nayana-Arati Kanitkar

Romance

पलाश बनकर आना

पलाश बनकर आना

1 min
356


निष्ठुर नयन है थके थके से

स्वर नहीं निकल रहे मुख से

जलती बाती सा मन मंदिर

सुनो!

इस बसंत जब आना

पलाश बनकर आना


अनकहे शब्द व चुप सी बातें

कुछ स्मृतियों की याद दिलाते

उदास चुपसा है मन मंदिर

सुनो!

इस बसंत जब आना

पलाश बनकर आना


चंद्रमा झाँक रहा खिड़की से

द्वार पर फैली है चांदनी

दीपक जल रहा मन मंदिर

सुनो!

इस बसंत जब आना

पलाश बनकर आना


लाना पुष्पों की अनंत बहार 

महक उठे क्षण क्षण का प्यार 

लिए प्रेममय गुलदस्ते संग

सुनो!

इस बसंत जब आना

पलाश बनकर आना



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Romance