पिया
पिया
मैं बनारस की, सियाह शाम में लिपटी, कोई घाट पिया,
तुम आरती का, एक सौ एक जगमगाता सा, रोशन दीया!
मैं सूरजमुखी के कुम्हलाए फूलों सी, हूँ जोहूँ , बाट पिया,
तुम सूर्य किरण अमृत, पी तुमको, रोम-रोम खिला किया !
मैं मीरा भजन संगीत बिन, बसाय तुमका उर कपाट पिया,
तुम कान्हा चंचल, बेरस जीवन में, घोलते सुर बाँसुरियाँ !
मैं तपता रण, कण-कण, मटमैला, पिसता समय पाट पिया,
तुम सावन की बौछार, बरसाते प्यार, बूँद-बूँद रंग केसरिया!
मैं कोरी काया, छूछे हाथ, कर्ण, नाक, कंठ, ललाट पिया,
तुम सोलह श्रृंगार मेरा, तुमने हर रस जीवन में है भर दिया!
मैं, मैं कहाँ? मुझमें बसते तुम ही तुम देख लो काट पिया,
तुम ही बताओ भला, उमा- शिव में भेद भी कोई किया ?

