पिताजी।
पिताजी।
माताजी हमारी थी प्यार की मूर्ति।
परंतु पिताजी के कारण ही होती थी सब के सपनों की पूर्ति।
माना घर में उनकी उपस्थिति मां से कम ही थी।
लेकिन फिक्र उनके मन में पूरे घर की थी।
घर को किफायत से चलाते रहते।
हमको बहुत कुछ समझाते रहते।
मां के डांट देने पर
मां के सामने तो नहीं अपितु पीछे से हमको दुलराते रहते।
एक चित्रकार के जैसे वह हम बच्चों के भविष्य का खाका बनाते थे रहते।
कहां बचत करनी है कहां खर्च यह हिसाब भी लगाते थे रहते।
हमारे हर सपने उनके कारण पूर्ण होते थे।
उनके बाद कभी वह जिद नहीं कर पाए जो हम उनसे थे करते रहते।
मांगों की फेहरिस्त हमारी लंबी थी।
पूरे परिवार की जिम्मेदारी उन पर ही तो थी।
हमारी खुशियों के दम पर उन्होंने कभी कुछ नहीं खरीदा।
उम्र पर्यंत उनकी यही कोशिश थी कि हम सबको मिले हमारी वह चीज है जो थी हमारी पसंदीदा।
पिता थे उन्होंने हमारा भविष्य भी संवारा।
लाइट जलने पर भी जो बचत करने को कहते थे।
हमारे विवाह के लिए जाने कैसे किया उन्होंने खर्च इतना सारा।
कहीं तो कमी की होगी।
कितने सपनों की बलि दी होगी।
किस तरह से परखा होगा घर वर हमारे लिए,
हमको हर खुशी देने के बाद भी उनके मन में था केवल ख्याल हमारा।
हमारे पिता हमारा सुरक्षा चक्र थे।
उनके होने मात्र से ही हम किसी से नहीं थे डरते।
हमारी नजरों में वह संसार में सबसे बलशाली थे।
उनके होने मात्र से हम सब भाग्यशाली थे।
आज पिता भले ही दुनिया में नहीं है लेकिन फिर भी हमारे साथ हैं।
भाइयों को देकर संस्कार आज भी हमारे पूर्ण होते काज है।
पिता की भूमिका को मां से कभी कम ना समझना।
माना मां है महान लेकिन पिता को भी महानतम समझना।
घर की सुख समृद्धि सब पिता से है।
घर में होती वृद्धि सब पिता से है।
घर को आत्मा मानो तो भले ही मां है मन लेकिन घर की बुद्धि तो केवल पिता से है