पिता
पिता
घर के मुखिया मेरे पिताजी,
उनसे ही चलता परिवार।
धरती पर लाती प्यारी मां,
हैं पिता हमारे पालनहार।।
मां की गोद भली धरनी सम,
पिता का गौरव चुमे आकाश।
तिल तिल कर दीप सम जले,
तब परिवार को मिले प्रकाश।।
हैं बचपन के आस पिता,
वे बरगद के पावन छांव।
पिता कीअंगुली पकड़ बढ़ते,
शिशु के नन्हे नन्हे पांव।।
अपने जीवन के संबल को,
तात कभी मत जाना भूल।
हर बालक में भावी पिता,
यही सत्य प्रकृति का मूल।।
जनक जननी को मानो देव,
प्रमुदित होंगे तब जगदीश।
मन मंदिर में इन्हें बिठा लो,
चरणों मेंउनके झुकालो शीश।