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Ritika Bawa Chopra

Inspirational

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Ritika Bawa Chopra

Inspirational

पिता

पिता

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बचपन में पिता के कंधे पर जिसे बैठने को मिल जाए,

उसे आसमान छूने की ज़रुरत क्या है,

बचपन में पिता के कंधे पर जिसे बैठने को मिल जाए,

उसे आसमान छूने की ज़रुरत क्या है,

सारी दुनिया का नज़ारा अगर ऐसे ही दिख जाए,

तो हवाईजहाज़ में उड़ने की ज़रुरत क्या है।


पिता का हाथ थाम कर अगर चलने को मिल जाए,

तो रास्ते की ज़रुरत क्या है,

पिता का हाथ थाम कर अगर चलने को मिल जाए,

तो रास्ते की ज़रुरत क्या है,

जब सफ़र इतना अनमोल बन जाए,

तो मंज़िल की ज़रुरत क्या है।


पिता के साथ बैठकर अगर ज्ञान की कुछ बातें हो जाए,

तो किताबें पढ़ने की ज़रूरत क्या है,

पिता के साथ बैठकर अगर ज्ञान की कुछ बातें हो जाए,

तो किताबें पढ़ने की ज़रूरत क्या है,

पिता के अनुभवों का पिटारा अगर खुल जाए,

तो ज़िन्दगी के इम्तेहानों से व्याकुल होने की ज़रुरत क्या है।


पिता वह छायादार वृक्ष है जिसकी छाया मिल जाए,

तो आसमान की ज़रुरत क्या है,

पिता वह छायादार वृक्ष है जिसकी छाया मिल जाए,

तो आसमान की ज़रुरत क्या है,

जब पिता के दिल में बसेरा मिल जाए,

तो मकान की ज़रुरत क्या है।


पिता उस चमकते चाँद की तरह है जिसकी ज़रा सी रौशनी मिल जाए,

तो दिया जलने की ज़रुरत क्या है,

पिता उस चमकते चाँद की तरह है जिसकी ज़रा सी रौशनी मिल जाए,

तो दिया जलने की ज़रुरत क्या है,

रात कितनी भी काली और गहरी क्यों न हो जाए,

फिर भी अंधेरे से डरने की ज़रुरत क्या है।


पिता वह चट्टान है जो तुम्हारे आगे खड़े हो जाए, 

तो मुश्किलें टकराकर लौट जाएँ,

पिता वह चट्टान है जो तुम्हारे आगे खड़े हो जाए, 

तो मुश्किलें टकराकर लौट जाएँ,

फिर चाहे आँधी आए या तूफ़ान,

घबराने की ज़रुरत क्या है।


पिता का हाथ हो जो सिर पर,

तो ताज की ज़रुरत क्या है,

पिता का हाथ हो जो सिर पर,

तो ताज की ज़रुरत क्या है,

जब हर ख्वाहिश बिना कहे ही पूरी हो जाए,

तो अलफ़ाज़ की ज़रुरत क्या है।


पिता के बारे में जितना लिखा जाए,

वो कम है,

पिता के बारे में जितना लिखा जाए,

वो कम है,

जब आँखें कर सकती है दिल का हाल बयां,

तो कलम की ज़रुरत क्या है।



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