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Ritika Bawa Chopra

Abstract

4.5  

Ritika Bawa Chopra

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इम्तेहान

इम्तेहान

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273


इम्तेहानों से कुछ बैर है मुझे,

बचपन में तो, फिर भी ठीक था,

कुछ पाठ पढ़े और पास हो गए,

कुछ नंबर कम भी आए, तो चलता था,

अगली बार ज़्यादा मेहनत कर लेना, माँ का कहना था,

पर अब बड़े होने पर भी, ये इम्तेहान पीछा नहीं छोड़ रहे,

आए दिन नए इम्तेहान ज़िन्दगी से जुड़ रहे,

ना पाठ्यक्रम का पता चलता है, ना ही इनकी कोई रणनीति का,

हर सवाल जैसे नया, और समझ के बाहर का,

अब तो, गूगल दादा भी कुछ काम नहीं आते,

मेरे सवालों के पिटारे को, वो भी नहीं सुलझा पाते,

जाने कब खत्म होगा इन इम्तेहानों का सिलसिला,

सोचती हूँ, होगा भी क्या, अगर जान भी गई इस जटिल जीवन का फलसफ़ा,

अब कमरे के किसी कोने में रख दूँगी, हर इम्तेहान का पन्ना,

सुकून से कटे अब ज़िन्दगी का बचा हर लम्हा, बस यही है मेरे दिल की तमन्ना!



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