STORYMIRROR

Ritika Bawa Chopra

Others

3  

Ritika Bawa Chopra

Others

एक था परिंदा

एक था परिंदा

1 min
312


एक था परिंदा , उड़ने को बेकरार,

पर कैद की बहुत मजबूत थी दीवार,

पंख खोलकर उड़ने की कोशिश वो रोज़ करता,  

फिर थक कर हार जाता,

कभी दो आँसू भी बहाता, 

बस अपनी आज़ादी को ही तरसता रहता,

रोज़ की कोशिशें होने लगी जब बेकार,

उसने भी छोड़ दी आज़ादी की पुकार, 

फिर एक दिन एक नन्हा बच्चा आया, 

उसने खोल दिया पिंजरे का दरवाज़ा,

पर परिंदा समझ ही नहीं पाया,

उसे आज़ादी का मिला था सुनेहरा मौका, 

फिर क्यों वह उड़ ही नहीं पाया,

शायद कैद होना आ गया था उसे रास, 

उसने खो ही दी थी हमेशा के लिए उड़ने की आस!



Rate this content
Log in