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Disha Singh

Abstract

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Disha Singh

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पिता

पिता

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कंधे पर लिये जिम्मेदारियों का बोझा 

पसीने में लिपटी हुई मेहनत 

मुसीबातों को हँसी में छुपाया 

ज़िंदगी जीने का अलग नज़रिया दिखाया। 


रास्तों में ढाल बनकर साथ चले

परिस्थिति में कभी न झुके 

खुद के जेब में दो रुपए भी न हो 

पर अपने बच्चों को वो सब कुछ दिये। 


रात के बुखार में माँ जगती है 

पर वो पिता होता है जो

रात भर न सोता है 

जन्म भले माँ देती है 

पर वो पिता ही होता है

जो हाथ पकड़कर चलना सिखाता है।

 

हम बड़े कितने भी हो जाये

वो सर सहलाना कभी न भूलता हैं 

मेरी क़ामयाबी के पीछे उनका श्रेय जाता हैं  

भीड़ में लग

ातार तालियों की गूंज

उस कोने में बैठे शासक की है। 


जो दिन रात एक ख़्वाब देखता है

जब कोई पीठ थपथपा कर कहता है  

उनका सर गर्व से उठता है

वो पिता ही होता है जो

ख़ुशी के आंसू को चुपके से पोंछता है। 

 

प्यार बहुत करते हैं 

जाहिर सी बात है 

वो ज़िक्र नहीं करते हैं

घर आते ही आवाज़ आती है 

बिट्टो ज़रा पानी तो लाना। 


वो आधी नींद की झपकी में

सब खो जाता है 

जब हमारा चेहरा

उनके हाथों में समाता है।


माथे पे सिकन न आने दे

 घने वृक्ष की तरह

पूरे परिवार को छाया दे 

वो पिता ही होता है

जो सुकून दे जाता है।


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